MOTIVATIONAL SHORT STORY
*आज का प्रेरक प्रसंग*
!! *शिक्षा की बोली ना लगने दें !!*
------------------------------ ---------------
एक नगर में रहने वाले एक पंडित जी की ख्याति दूर-दूर तक थी। पास ही के गाँव में स्थित मंदिर के पुजारी का आकस्मिक निधन होने की वजह से, उन्हें वहाँ का पुजारी नियुक्त किया गया था। एक बार वे अपने गंतव्य की और जाने के लिए बस में चढ़े, उन्होंने कंडक्टर को किराए के रुपये दिए और सीट पर जाकर बैठ गए। कंडक्टर ने जब किराया काटकर उन्हें रुपये वापस दिए तो पंडित जी ने पाया कि कंडक्टर ने दस रुपये ज्यादा दे दिए हैं। पंडित जी ने सोचा कि थोड़ी देर बाद कंडक्टर को रुपये वापस कर दूंगा। कुछ देर बाद मन में विचार आया कि बेवजह दस रुपये जैसी मामूली रकम को लेकर परेशान हो रहे है।
आखिर ये बस कंपनी वाले भी तो लाखों कमाते हैं, बेहतर है इन रूपयों को भगवान की भेंट समझकर अपने पास ही रख लिया जाए। वह इनका सदुपयोग ही करेंगे। मन में चल रहे विचारों के बीच उनका गंतव्य स्थल आ गया। बस से उतरते ही उनके कदम अचानक ठिठके, उन्होंने जेब मे हाथ डाला और दस का नोट निकाल कर कंडक्टर को देते हुए कहा, भाई तुमने मुझे किराया काटने के बाद भी दस रुपये ज्यादा दे दिए थे। कंडक्टर मुस्कराते हुए बोला, क्या आप ही गाँव के मंदिर के नए पुजारी है?
पंडित जी के हामी भरने पर कंडक्टर बोला, मेरे मन में कई दिनों से आपके प्रवचन सुनने की इच्छा थी, आपको बस में देखा तो ख्याल आया कि चलो देखते है कि मैं अगर ज्यादा पैसे दूँ तो आप क्या करते हो.. अब मुझे विश्वास हो गया कि आपके प्रवचन जैसा ही आपका आचरण है। जिससे सभी को सीख लेनी चाहिए: बोलते हुए, कंडक्टर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी। पंडितजी बस से उतरकर पसीना-पसीना थे।
उन्होंने हाथ जोड़कर भगवान का आभार व्यक्त किया कि हे प्रभु! आपका लाख-लाख शुक्र है, जो आपने मुझे बचा लिया, मैने तो दस रुपये के लालच में आपकी शिक्षाओं की बोली लगा दी थी। पर आपने सही समय पर मुझे सम्हलने का अवसर दे दिया। कभी कभी हम भी तुच्छ से प्रलोभन में, अपने जीवन भर की चरित्र पूँजी दाँव पर लगा देते हैं।
ENGLISH VERSION
* Motivational Story*
, *Don't let education bid!!*
,
The fame of a Pandit ji living in a city was far and wide. Due to the sudden demise of the priest of the temple located in a nearby village, he was appointed the priest there. Once he boarded the bus to go to his destination, he gave the fare money to the conductor and sat down on the seat. When the conductor gave him back the money after deducting the fare, Pandit ji found that the conductor had given ten rupees more. Pandit ji thought that after a while I would return the money to the conductor. After some time a thought came in my mind that unnecessarily they are getting worried about a small amount like ten rupees.
After all, even these bus company people earn lakhs, it is better to keep these money as God's gift and keep it with you. He will make good use of them. His destination came amidst the thoughts running in his mind. As soon as he got off the bus, his feet suddenly stopped, he put his hand in his pocket and took out the ten rupee note and gave it to the conductor and said, brother, you gave me ten rupees more even after deducting the fare. The conductor smiled and said, are you the new priest of the village temple?
When Panditji agreed, the conductor said, I had a desire to listen to your discourses for many days, when I saw you in the bus, I thought, let's see what you do if I give more money.. Now believe me It is known that your conduct is the same as your discourse. From which everyone should learn: Speaking, the conductor pushed the train forward. Panditji was sweating after getting off the bus.
He thanked God with folded hands that Oh Lord! Thank you lakhs and lakhs, which you saved me, I had bid for your teachings in the greed of ten rupees. But you gave me an opportunity to take care of me at the right time. Sometimes we, too, put at stake our life's worth of character capital, in the tiniest of temptations.
No comments:
Post a Comment