SHORT POEM
"दुआ के कई रंग है,
धागों की तरह..
जो धागे सिर्फ़
अपनी ख्वाहिशों की मांग के रंग मे रंगे होते है,
उन धागो से काढ़ी हुई
दुआ के रंग मुख्तलिफ़ होते है
लेकिन जिन धागो पर
रब की मुहब्बत का रंग चढ़ा होता है,
उससे काढ़ी हुई दुआ की खुशबू और आती है
दुआ की छाँव मे बैठकर
सिर्फ़ रब से कुछ मांगना ही जरूरी नहीं,
बल्कि इस छाँव मे छिपे हुए खूबसूरत सफ़र की आहट सुनना भी है..."
~अमृता प्रीतम
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चांद
*चांद भी क्या खूब है,*
*न सर पर घूंघट है,*
*न चेहरे पे बुरका,*
*कभी करवाचौथ का हो गया,*
*तो कभी ईद का,*
*तो कभी ग्रहण का*
*अगर*
*ज़मीन पर होता तो*
*टूटकर विवादों मे होता,*
*अदालत की सुनवाइयों में होता,*
*अखबार की सुर्ख़ियों में होता,*
*लेकिन*
*शुक्र है आसमान में बादलों की गोद में है,*
*इसीलिए ज़मीन में कविताओं और ग़ज़लों में महफूज़ है”*
*न सर पर घूंघट है,*
*न चेहरे पे बुरका,*
*कभी करवाचौथ का हो गया,*
*तो कभी ईद का,*
*तो कभी ग्रहण का*
*अगर*
*ज़मीन पर होता तो*
*टूटकर विवादों मे होता,*
*अदालत की सुनवाइयों में होता,*
*अखबार की सुर्ख़ियों में होता,*
*लेकिन*
*शुक्र है आसमान में बादलों की गोद में है,*
*इसीलिए ज़मीन में कविताओं और ग़ज़लों में महफूज़ है”*
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